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संस्कृति

विकिपीडिया से
(सांस्कृतिक से अनुप्रेषित)

कौनों भी  पुरान भा वर्तमान लोगन के  समूह के आचार- बेहवार के सगरी अमूर्त तत्वन के एकट्ठा रूप होला संस्कृति । जब कवनो संस्कार के आकर के रूप में देखल जाला वोह आकर के नाम ह  संस्कृति । संस्कृति सभ्यता के क्रियारूप होला जवन आदमी के  ब्यक्तिगत भा सामाजिक लुरी,रहन,शहुरि,पहिरावा,उठ -बइठ,बोली ,बिचार भा सामाजिक क्रियाकलाप के रूप में लउकेला। जतना भी देवनागरी लिपि से जुडल भाषा बडिस उ सब भाषा में एकरा के संस्कृति ही कहल जाला अंग्रेजी में एकरा के culture  कहल जाला।

संस्कृति शब्द के उत्पत्ति

संस्कृति शब्द के उत्पत्ति संस्कृत शब्द के साथ साथ मानल जाला। संस्कृत भाषा के उत्पत्ति [1] प्राकृत,यवाणी,भजपुरी(भोजपुरी ) ,अवधी ,मैथली ,सैथली कुवांड,लुवांड,ज्वाठी,हलथि,मियांजा ,संस्थाली, बिरोछा ,कुमान्ड आदि चौदह भाषा के  संस्कार देला  से भइल बा । एह प्रकार से भाषा आ संस्कृति के संबंध नोह् आ मांस नियन एक दूसरा के पूरक बन गइल।हर भाषा के आपन संस्कृति होला,एकर कारण मानव सभ्यता के बिकाश के समय में मानव के अलग अलग समूह में रहेके प्रविर्ती के मानल जाला। भोजपुरी भाषा संस्कृत से भी पुरान भाषा ह। आज सांस्कृतिक कर्मकांड में बहुत क्रिया के भोजपुरी संस्कृति के अनुसार कइल जाला जैसे भोजपुरी संस्कृति के मट्कोड ,भूमिपूजन बनल।

संस्कृति के अंग -

  • भाषा :- भाषा कवनो भी संस्कृति के मुख्य अंग मानल जाला। भाषा के मुख्य शक्ति शब्द होला आ शब्द वोह संस्कृति में कइल जाये वाला सामाजिक क्रिया कलाप आ अनुभव के प्रतिफल होला। जवना भाषा में शब्द संख्या जतना ज्यादा होई उ ओतना समृद्ध भाषा मानल जाला संपूर्ण भाषा में सबसे ज्यादा शब्द संस्कृत भाषा में बा आ संस्कृत में 12 आना शब्द भोजपुरी भाषा से गइल बा। संस्कृत ब्याकरण में तीन लिंग भी भोजपुरी संस्कृती के देन मानल जाला।भोजपुरी भाषा सहचर शब्द के सबसे ज्यादा धनि भाषा ह। बिना सहचर शब्द के कवनो भी शब्द भोजपुरी में नईखे जैसे पानी -वानी ,खाना-पीना,बैठाल -वैठाल आदि ई सहचर शब्द भोजपुरी में प्राकृत भाषा से जुडल बा। एह प्रकार से भोजपुरी के शब्द संख्या बहुत बढ़ जाला।
  • पहिरावा:-पहिरावा भा पहिरन कवनो भी संस्कृति के दूर से लउकेवाला चीज है। कवनो भी संस्कृति में पहिरन के आधार जलवायु ,सुलभता आ सहजता के मानल जाला। पूरा भारत में कवनो भी बिधार्थी के यदि ई कहब की ये बाबू तनी किशान के चित्र बनाव त उ फट से भोजपुरी पहिरन से सज़ल पुरुष के चित्र बना दी। भारत ही ना बहुत सारा देश में किशान के  चित्र में भोजपुरी पहिरन ही लउकेला ला।पहिरन संस्कृति के पहिचान ह। एह से पहिरन के संस्कृति के मुख्य अंग मानल जाला।
  • क्रिया-कलाप :-आदमी के क्रिया-कलाप ओकरा संस्कृति से  झळकावेला। रोज करे वाला काम भी संस्कृति के आधार पर होला। एह से आदमी के रोज के क्रिया-कलाप भी संस्कृति से अंग मानल जाला।
  • सामाजिक परम्परा :- सामाजिक परंपरा हमेशा संस्कृति के आधार प होला आ एकरा के संस्कृति के आधार आ अंग मानल जाला।
  • तिउहार :- तिउहार संस्कृति के मुख्य अंग मानल जाला। तिउहार सामाजिक क्रिया-कलाप के अंग ह। समाज में मनवाल जएवाला तिउहार संस्कृति के पहिचान होला।

संस्कृति के महत्व :-  मानवता के श्रृंगार ,पालन ,आ रक्षा करे में संस्कृति के  महत्वपूर्ण भूमिका बा ,संस्कृति बिहिन मानव समाज जीव मात्र बन के रह जाला। संस्कृति खाली मानवता खाती मात्र ना होके एह धरती प के जीव खाती भी बहुत आवस्यक बिआ। पशु-पालन ,कृषि संस्कृति के आधार प ही बिकाश करेले। सामाजिक बिकाश के आधार में संस्कृति रीढ़ के हड्डी नियन भूमिका निर्वाह करेली। संस्कृति से परिवार ,समाज ,देश के संबंध सूत्र मिलेला।